रविवार, 29 दिसंबर 2024

श्री रामेश्वरम ज्योतिलिंग एक अनोखा ज्योतिलिंग

 

श्री रामेश्वरम ज्योतिलिंग एक अनोखा ज्योतिलिंग

श्री रामेश्वरम ज्योतिलिंग तमिलनाडु राज्य में है यहाँ जाने के लिए देश के सभी भागो से सरक रेल हवाई यात्रा की सुबिधा उपलध है यह तमिलनाडु के   जिले में है यह टापू देश के दक्षिणी सिरे पर है यहाँ रेल और सरक मार्ग से आप जा सकते है नजदीकी रेलवे स्टेशन रामेश्वरम ही है समुन्द्र के उस पार पामबन ब्रिज है जिसे पार कर हम रामेश्वरम पहुच सकते है पुल काफी पुराना है इसे अंग्रेजो ने १९१४ में बनबाया था अब नए ब्रिज पुल का भी निर्माण हो गया है जिसका उद्घाटन कुछ ही दिनों में देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी करने बाले है फ़िलहाल यहाँ जाने के लिए आपको पंबम ब्रिज रेलवे स्टेशन पहुचना होगा जहा से मेमू ट्रेन आपको मिल जायेगी जो आप को रामेश्वरम पंहुचा देगी आप सारक मार्ग से भी जा सकते है देश के हर कोने से मद्रास या मनामदुरै जंक्शन पहुचकर भी आप- आगे ट्रेन से रामेश्वरम की यात्रा कर सकते है

यह भगवान शिव का सातवा ज्योतिलिंग है दक्षिण भारत में इसकी काफी महत्व है श्री रामेश्वरम हिन्दुओ के चार धाम में से एक है रामेश्वरम शंख के आकार का एक सुन्दर टापू है यह हिन्द महासागर और बंगालध की खारी से घिरा हुआ है भगवान् राम ने लंका पर विजय प्राप्त करने के लिए यहाँ एक पथ्थरो से सेतु का निर्माण करवाया था श्री राम ने बाद में विभीषण के कहने पर इस सेतु को तोर दिया था इस सेतु के अवसेश आज भी समुद्र में दिखाई देते है

पहले रामेश्वरम जाने के लिए नाव का इस्तेमाल होता था बाद में एक राजा ने यहाँ पाथ्थारो का एक पुल का निर्माण करवाया था बाद में अग्रेजो के आने तक यह पुल टूट चूका था अग्रजो ने बाद में इसके जगह पर एक खुबसूरत रेलवे पुल का निर्माण करवाया यह पुल रामेश्वरम को भारत से रेल सेवा से जोरता है सागर के उठला होने के कारन यहाँ बहुत कम लहरे उठती है इस पुल को पार करते समय ऐसा लगता है की जैसे बह वह किसी नदी को पर कर रहे है

श्री रामेश्वरम ज्योतिलिंग की स्थापना की कथा बहुत हि रोचक है श्री राम ने सीता को छुराने के लिए लंका पर चढाई की थी श्री राम युद्य नहीं चाहते थे लेकिन रावन सीता को बापस करने को तेयार नहीं था श्री राम को मजबूर होकर युध्य करना परा था अंत में श्री राम की जित हुई थी रावन युध्य में मारा गया था


रावन महार्रिशी पुलस्त्य का पोता था उसे चारो वेदों का पूर्ण ज्ञान था रावन भगवान् शिव का परम भक्त था रावन को मरने से श्री राम को काफी दुखी हुआ था वह ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्त होना चाहते थे उनोने श्री रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना करने का निर्णय लिया श्री राम ने हनुमान जी को काशी से एक शिवलिंग लाने का आदेश दिया था हनुमान जी हवाई मार्ग से काशी शिवलिंग को लेंने चले गए

शिवलिंग के स्थापना का समय निकला जा रहा 

था हनुमान जी को आने में देर हो गयी थी सीता जी ने बालू से एक शिवलिंग बना दिया श्री राम जी ने शुभ मुहूर्त में शिव लिंग को स्तापित कर दिया यही शिवलिंग रामनाथ या रामेश्वर कहलाता है श्री राम जी ने हनुमान जी के द्वारा लाये गए शिवलिंग को भी बगल में छोटे शिव लिंग के पास स्थापित कार दिया श्री रामेश्वरम मंदिर में दोनों शिव लिंग की पूजा होती ह

रामेश्वरम मंदिर का निर्माण श्री लंका के राजा पराक्रम बहु ने करवाया था गर्व गृह में सिर्फ शिवलिंग की ही स्थापना की गयी थी और किसी भी देवी देवता की मूर्ति नहीं राखी गयी थी बाद में रामनाथपुरम के राजा उद्दैन्यर ने इसका पुनः निर्माण  करवाया था रामेश्वराम मंदिर विश्व में अपनी अलग छवि रखता है इस मंदिर में विश्व का सबसे लम्बा गलियारा है मंदिर का मुख्य पुजारी नेपाल देश का ही होता है रामेश्वरम का विशाल मंदिर पथ्थरो का निर्मित है मंदिर के समीप कोई पहर नहीं है गंध मादन पर्वत असल में एक तिला है इसमें से पर्थर निकलना आसान नहीं है है मंदिर बनाने के लिए पत्थर लंका से नवो मेंलाद कर लाये गए थे इस मंदिर का प्रवेश द्वार 40 फीट उचा हाई मंदिर के खंभों पर काफी सुन्दर नकाशी की गयी है यह मंदिर भारतीय शिल्प कला का अद्भुत नमूना है

पहले रामेस्वरम मंदिर में २४ कुंद थे लेकिन उन में से २ कुंद सुख गए अब सिर्फ  २२ कुंद ही बचे है २१ कुंदो का मिला जुला पानी २२वे कुंद में आता है इन जल कुंदो में नहाने से मनुष्य के कई जन्मो के पाप मिट जाते है

मंदिर के टिक सामने पूर्वी दरवाजे के पास सीता कुंद बना हुआ है कहा जाता है की यही वो जगह है जहा सीता जी ने अग्नि परीक्षा दी थी यहाँ समुन्द्र का किरण अर्ध गोलाकार है

यहाँ सागर बिलकुल शांत रहता है वह एक तालाव सा लगता है हनुमान कुंद में पत्थर तैरते हुआ नजर आते है श्री रामेश्वरम मंदिर की हिफजत रामनाथपुरम के राजा करते है रामनाथपुरम रामेश्वरम से ३४ मिल दूर है यह रियासत अब तमिलनाडु राज्य में मिल गयी है

रामनाथपुरम के महल में एक काला पत्थर रखा हुआ है जिसके बारे में कहा जाता है की यह पत्थर राम जी ने केवट को दिया था शिव भक्त इस पत्थर को देखने के लिए रामनाथपुरम जाते है

धनुष्कोती तीर्थ टापू के दक्षिण सिरे पर है यहाँ बंगाल की खरी हिन्द महासागर से मिलती है इस जगह को सेतु बांध कहा जाता है धनुष्कोती तीर्थ का धार्मिक काफी महत्व है पहले के समय में यही से श्री लंका के कोलम्बो जहाज से जाया करते थे  अब यह जगह समुन्द्र में तूफान आने से नस्त हो गया है

रामेश्वरम मद्रास से करीब ४५० किलोमीटर की दुरी पर है मद्रास से रामेश्वरम पहुचने में करीब २४ घंटे का समय लगता है अब सीधे रामेश्वरम तक ट्रेन जाती है जहा का नजदीकी स्टेशन पामबन ब्रिज है यह से भी ट्रेन रामेश्वरम के लिए चलती है समुद्र में काफी कोरिया  शंख शिपे मिलती है कही कही सफ़ेद शंख भी मिल जाते है सफ़ेद रंग के मूंगा भी मिल जाते है जिसकी काफी डिमांड है यह का प्राकृतिक सोंदर्ज  काफी सुन्दर और सुहावना  है

 लेखक स्वामी निर्मल गिरी जी महाराज 

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