सोमवार, 30 दिसंबर 2024

श्री काशी विश्वनाथ ज्योतिलिग दिव्य और अलोकिक ज्योतिलिंग


श्री काशी विश्वनाथ ज्योतिलिग दिव्य और अलोकिक ज्योतिलिंग

निर्मल सेवा संस्थान सहरसा बिहार की और से श्री काशी विश्वनाथ ज्योतिलिंग के चरणों में समर्पित






श्री काशी विश्वनाथ ज्योतिलिंग उत्तेर प्रदेश के वाराणसी जिले में  है यह ज्योतिलिंग वाराणसी रेलवे स्टेशन से करीब 5 किलोमीटर की दुरी पर है यह ज्योतिलिंग वाराणसी शहर के गंगा नदी के किनारे स्थित है यहाँ पहुचने के लिए देश के सभी भागो से सडक रेल हवाई सुविधा उपलध है आप देश के किसी भी हिस्से से वाराणसी जंक्शन पहुचे वाराणसी में इंटरनेशनल हवाई अड्डा है जहा आप पहुच कर वहा से सीधे गोदालिया चौक पहुचे  वाराणसी रेलवे स्टेशन से श्री विश्वनाथ  मंदिर 5 किलोमीटर की दुरी पर है ऑटो बाला आपसे २० या ३० रूपये में आप को गोदालिया चोक पहुचा देगा जहा से मंदिर ५०० मीटर की दुरी पर है मंदिर के आस पास काफी दुकाने है इस के बिच से एक रास्ता गलियों से श्री काशी विश्वनाथ मंदिर की और जाता  है इन्ही गलियों से चल कर आप को मंदिर परिसर जाना होगा मुख्य सरक से गेट नंबर ४ से भी आप मंदिर जा सकते है इस मंदिर के अन्दर जाने के चार प्रमुख्य गेट है गेट नंबर २ जो गंगा किनारे से है जहा आप मंदिर के ट्रस्ट के लोकर में निःशुल्क अपना सामान रख सकते है गंगा में स्नान के उपरांत आप गेट नंबर २ से मंदिर के अंदर प्रवेश कर सकते है यहाँ मोबाइल या कोई भी सामान अलाऊ नहीं है आप को मंदिर के अन्दर ही फुल दूध प्रसाद मिल जायेंगे जो आप ज्योतिलिंग पर अर्पित कर सकते है यहाँ अब अर्घ सिस्टम हो गया है आप अर्घा में गंगा जल चदा सकते है मंदिर पहले काफी पुराना था जिसे रानी अहिल्या बाई ने बनबाया था मंदिर के शिखरों को राजा रंजित सिंह जी ने सोने के पत्रों से सजवाया था मंदिर पर अभी भी सोने की परत चढ़ी हुई है  लेकिन बर्तमान में  मंदिर को नवनिर्मित किया गया है मंदिर के परिसर में काफी लम्बा कारीडोर का निर्माण वर्तमान उतर प्रदेश सरकार के द्वारा करवाया गया है मंदिर के कारीडोर को काफी अच्छा बनाया गया है इस मंदिर की पास काफी जमीने है लेकिन मंदिर के आस पास के मंदिरों को नए सिरे से बिकसित किया जा रहा है मंदिर के दक्षिण की और से प्रसिध्य माता अन्नपूर्ना का मंदिर है मंदिर के अन्दर काफी पुराने मंदिरों का समूह है मंदिर चारो और से दुकानों से घिरा हुआ है  पास ही मंदिर के पूरब की और से गंगा नदी है पास ही प्रसिद्ध मणिकर्णिका घाट है जहा हर समय चिताए जलती रहती है मंदिर के ही पास में गलियों में प्रसिद्ध विप्लाक्षी मंदिर है जहा दक्षिण भारत के शिव भक्तो का जमाबरा लगा रहता है  काशी काफी प्राचीन नगरी है कहा जाता है की यह काशी नगरी भगवान शिव के त्रिशुल् पर वसी है प्रलय के समय में भी इस नगरी को भगवान् शिव अपने त्रिशूल पर  घारण करते है जिससे काशी का कभी भी विनाश नहीं होता है यह काशी नागरी सप्त पुरियो में से एक है यहाँ आने के बाद आपको यहाँ से जाने का मन नहीं करेंगा क्योकि यह नगरी सिर्फ नगरी ही नहीं मोक्ष प्रदान करने वाली अनुपम नगरी है यहाँ घाटो पार आपको पुरे विश्व के पर्यटक मिल जायेंगे जो यहाँ आकर पूरी तरह से भक्ति से सारावोर नजर आयेंगे काशी फकारो की नगरी है काशी दिलवालों की नगरी है काशी शिव भक्तो की नगरी है काशी के रंग में दुवे आपको हर जगह भक्त नजर आ जायेंगे काशी विश्वनाथ मंदिर के समिप कई घाट है सबसे प्रमुख्य दसासस्मेघ घाट है जहा प्रतिदिन संध्या काल में गंगा आरती का आयोजन किया जाता है जिसे देखने के लिए पुरे  विश्व से पर्यटक आते है काशी शान है हमारी काशी मान है हमारी  जो मनुष्य अपने जीवन में एक बार काशी का दर्शन पूजन नहीं किया उस मनुष्य का मनुष्य जनम पूरी तरह से  बेकार  है  आप एक बार काशी आकर तो देखे पुरे काशी में कुल चोरासी घाट है अस्सी संगम घाट से लेकर आदि केशव घाट तक आप को चारो और घाट ही घाट नजर आयेगे गंगा नदी में काफी नाव चलती है आप इन नावो पर बोटिंग का भी मजा ले सकते है






गंगा नदी के किनारे तट पर  बसा हुआ बनारस शाहर भारत के प्राचीनतम  शहरो में से एक है बनारस को पुरानो में काशी के नाम से जाना जाता है कहा गया है की बनारस शहर भगवान शिव के त्रिशूल पर बसा हुआ है पृथ्वी के प्रलय आने पर भी काशी नगरी सदा सुरक्षित रहेगी  काशी हम हिन्दुओ का सबसे बड़ा पवित्र तीर्थ स्थल है काशी के घाटो पर पुर्बजो के अस्थि को गंगा में प्रवाहित किया जाता है काशी को घाटो के शहर के रूप में भी जाना जाता है इन घाटो में दशास्मेघ घाट प्रमुख्य है मनिकर्न्निका घाट पर अंतिम संस्कार करने से मनुष्य जनम मरण के बन्धनों से मुक्त हो जाता है नारद पुराण के अनुसार काशी भगवान् शिव के बारह ज्योतिलिग  में नोवा ज्योतिलिंग है काशी में असथित ज्योतिलिंग हजारो शालो पुराना है ऐसा माना जाता है की गंगा में दुबकी लगा कर भगवान काशी विश्वनाथ की पूजा अर्चना करने से मनोबंछित फल की प्राप्ति होती है भगवान् शिव का ज्योतिलिंग बाद में जीर्ण शीर्ण हो गया था जिसे बाद में हिन्दू राजाओ ने इसका पुनः निर्माण करवाया था बाद में किसी  मुग़ल बादशाह ने इसे नस्त करवा दिया था इसके स्थान पर मस्जिद का निर्मान करवाया गया था बर्तमान मंदिर जो है इसका निर्माण इंदौर की रानी अहिल्या बाई ने १७८० में करवाया था १८३९ में पंजाव केशरी श्री महाराजा रंजित सिंह जी ने इस पर 1हजार किलो सोने से मंदिर की दीवारों अवम छत को सोने से सजवाया था मंदिर की दीवारों अवम छत पर की गयी नकासी मन मोहने बलि है





श्री काशी विश्वनाथ मंदिर में पूजा अर्चना हिन्दू पंडितो के द्वारा किया जाता है यहाँ बतमान सरकार के द्वारा मंदिर के ट्रस्ट को अपने अधीन करके समस्त कार्य की देखभाल करते है यह मंदिर काफी सुन्दर और रमणीक है यहाँ रहने खाने पिने की उचित प्रबंध है श्री काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट की और से निःशुल्क भोजन की भी बयब्स्य्था है वाराणसी शहर में आपको हजारो निजी होटल मिल जायेगे गंगा के तट पर भी कई होटल है जिसमे आप अपनी सुबिधा के अनुसार रुक सकते है यहाँ कई धरम शालाये भी है जहा भक्तो के रहने की अछि सुबिधा है यहाँ के गलियों में बिकने बाले व्यंजन का भी आप लुफट उठा सकते है इसमें से कचोरी गली काफी फैमस है भगवान शिव के अतिरिक्त यह काफी मूर्तियों की दुकाने भी है





भगवान शिव का ज्योतिलिंग लगभग ६० सेंटीमीटर लम्बा है जिसे चांदी की बेदी मेंरखा गया है मंदिर का दरवाजा सुबह करीब २.३० बजे खुल जाता है सुबह में भगवान् शिव के ज्योतिलिंग की मंगला आरती सुवः ३.०० बजे  होती है भगवान् काशी विश्वनाथ की आरती दिनमें पञ्च बार की जाती है शाम की आरती ७.०० बजे से 8.३० होती है भगावान शिव के ज्योतिलिंग का दर्शन रात्रि के ९ बजे तक होती है १०.३० बजे के बाद शयन आरती के बाद मंदिर को बंद कर दिया जाता है मंदिर के ट्रस्ट के पुजारियों के द्वरा आप पूजा आर्चना करवा सकते है आप अपनी इच्छा के अनुसार दान भी दे सकते है भगवान् शिव के इस ज्योतिलिंग के पूजा में विशेष कर दूध गंगाजल  वेळ पात्र पुष्प भंग धतूरे का बिसेस महत्व होता है वाराणसी में मंदिर के आस पास  अनेक मंदिर और दर्शनीय स्थल है जिसमे से प्रमुख्य मानस मंदिर  संकट मोचन मंदिर दुर्गा मंदिर काशी हिन्दू विश्व विदालय  अवम इसके परिसर में स्तिथ भगवान् शिव का नया विश्वनाथ मंदिर प्रमुख्य है बनारस काशी में घटो का विसेस महत्व है शाम के समय भक्त गंगा में नोका विहार का भी आनद उठाते है काशी आकर आपको ऐसा महशुस होगा मानो आप किसी स्वर्ग में आ गए है जीवन में इक बार काशी जरुर आये और यहाँ के मंदिरों के दर्शन जरुर करे

 

लेखक स्वामी निर्मल गिरि जी महाराज

 

त्र्यंमबकेश्वर ज्योतिलिंग एक अंकुरित ज्योतिलिंग

 

त्र्यंमबकेश्वर ज्योतिलिंग एक अंकुरित ज्योतिलिंग

 




 

त्र्यंमकेश्वर ज्योतिलिंग महारास्त्र के नासिक जिले में है यह भगवान् शिव का दसवा ज्योतिलिंग है त्र्यंमकेश्वर ज्योतिलिंग





का भव्य मंदिर महारास्त्र के नासिक में है यह मंदिर इंडो आर्यन शेली में बना हुआ है इस मंदिर का निर्माण काले पत्थर से हुआ है त्र्यंमकेश्वर ज्योतिलिंग नासिक शहर से ३० किलो मीटर की दुरी पर है त्र्यंमकेश्वर ज्योतिलिंग के शिव लिंग के दर्शन मात्र से ही मानुष के सभी पाप नस्त हो जाते है त्र्यंमकेश्वर ज्योतिलिंग शिवलिंग उभरा हुआ नहीं है इस शिवलिंग में ब्रह्मा विष्णु महेश तीनो देवो का संयुक्त रूप से निवास है  त्र्यंमकेश्वर ज्योतिलिंग की यही विशेसता उन्हें शभी ज्य्तिलिंग सी अलग से करती है

त्र्यंमकेश्वर ज्योतिलिंग के बिशय में इस कविता से इसके महत्व को समझा जा सकता है

त्र्यंमकेश्वर ज्योतिलिंग जैसा कोई पवित्र स्थान नहीं

गोवाबरी जैसा नदी नहीं

ब्रह्म गिरी जैसा पर्वत नहीं

त्र्यंमकेश्वर ज्योतिलिंग की कथा बहुत ही पुराणी है शिव महा पूरण के अनुसार एक बार ब्रह्मा विष्णु में विवाद हो गया वे विवाद को निपतारा के लिए भगवान् शिव के पास पहुचे भगवान् शिव ने इन दोनों का इम्त्यान लिया ब्रह्मा जी हार गए भगवान् विष्णु जित गए

भगवान् शिव ने ब्रह्मा जी को श्राप दे दिया की उनकी किसी नही जगह पूजा नहीं होगी और धरम क्रिया में कही जगह नहीं होगी उन्होंने भगवान् विष्णु को वरदान को आशीर्वाद दिया की वह लम्वे समय तक पूजे जायेगे त्र्यंमकेश्वर ज्योतिलिंग




भगवान् शिव का ही इक अंश है  भगवान् शिव के ज्योतिलिंग में यह प्रमुख्य है यहाँ दो प्रमुख्य स्थान है

1.श्री त्र्यंमकेश्वर ज्योतिलिंग

२.कुशावरत तीर्थ वो स्थान है जहा गोडावरी नदी का उद्गम स्थल है यह माना जाता है की इसमें स्नान करने से मनुष्य के साभी पाप धुल जाते है गोवाबरी नदी की उद्गम की कथा बरी ही निराली है भगवान् शिव का विवाह हो रहा था तभी ब्रह्मा जी का वीर्य पात हो गया था तव भगवान् शिव ने ब्रह्मा जी को कहा की आप स्नान करके सुधी हो जाये ब्रह्मा जी ने भगवान् शिव की सलाह मानकर गंगाजल से स्नान करके पवित्र हो गए तभी से भगवान् शिव यहाँ शिव लिंग के रूप में स्तापित हो गए थे तीनो देवो के साथ स्थापित होने के कारन इस ज्योतिलिंग का नाम त्र्यंमकेश्वर ज्योतिलिंग के रूप में प्रसिद्ध हो गये




त्र्यंमकेश्वर ज्योतिलिंग मंदिर नासिक शहर से लगभग ३५ किलो मीटर की दुरी पर है यहाँ जाने के लिए आपको बस या ऑटो मिलजायेंगे बस का किराया लगभग ५० से ७० रुपये रहता है मंदिर तक आप बस या टेक्सी से आप पहुच सकते है गुजराती समुदाय ने यहाँ कई धरम शालाये बना रखे है जहा आप रह सकते है यहाँ कई निजी होटल भी है जहा आप रह सकते है

यहाँ आप यहा के निवासियों के यहाँ भी रह सकते है क्योकि यहां होम स्टे की सुविधा उपलध है भोजन की भी अचछी  सुविधा है  नासिक शहर से त्र्यंमकेश्वर ज्योतिलिंग के विच हमेसा राज्य परिवहन की बसे हमेशा चलती रहती है जिस से भी आप यहाँ जा सकते है मंदिर सुबह 5,३० से रात्रि के ९ बजे तक खुला रहता है त्र्यंमकेश्वर ज्योतिलिंग इक खुबसूरत जगह है यह समुद्र ताल से करिव ३००० मीटर की उचाई पर है सुवः से ही त्र्यंमकेश्वर ज्योतिलिंग के दर्शन के लिए लम्बी लाइन लग जाती है मंदिर का वाताबरण काफी सुन्दर और मन्त्र मुघ करने बाला है

त्र्यंमकेश्वर ज्योतिलिंग आने बाले पयटक के लिए नगर निगम जिम्मेदारी उडाता है मंदिर के आस पास कई और दरसनीय स्थान है जिनका आप दरसन कर सकते है यहाँ ब्रह्म गिरी पर्वत है जिस पर ट्रेकिंग का मजा लिया जा सकता है यहाँ के निवासी उपर पहाड़ पर भी रहते है इस पर्वत के उपर कई गुफाये है जिनमे पाताल गंगा गोरख नाथ ताप स्थली प्रमुख्य है जिसका आप उपर पर्वत पर जाकर दर्शन कर सकते है यहाँ से और कई दर्शनीय स्थानों की भ्रमण कर सकते है

लेखक स्वामी निर्मल गिरी जी महाराज

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

श्री नागेश्वर ज्योतिलिंग एक सुन्दर ज्योतिलिंग

 


श्री नागेश्वर ज्योतिलिंग एक सुन्दर ज्योतिलिंग 

श्री नागेश्वर ज्योतिलिंग भगवान् शिव का आठवा ज्योतिलिंग है श्री नागेश्वर ज्योतिलिंग का भव्य मंदिर द्वारिका पूरी से २५ किलोमीटर की दुरी पर दारुका वन में स्थित है भगवान शिव की गाथा और भक्ति की महिमा काफी सुन्दर है भगवान् शिव का श्री नागेश्वर ज्योतिलिंग गुजरात के द्वारिका जिले में है श्री नागेश्वर ज्योतिलिंग की काफी महिमा है भगवान् शिव पुरे जगत में सर्व जगह व्याप्त है इनके स्मरण मात्र से मनुष्य का कल्याण हो जाता है श्री नागेश्वर ज्योतिलिंग की महिमा सारे संसार में प्रसिध्य है श्री नागेश्वर ज्योतिलिंग का दर्शन पूजन कर हर प्राणी कृताथ हो जाता है

श्री नागेश्वर ज्योतिलिंग की स्थापना की कथा बरी ही  रोचक और दिलचस्प है कहा जाता है की एक बार दारुका नाम के राक्षसी  ने घोर तपश्या किया था माता पार्वती ने दारुका की तपश्या से खुश होकर उसे दर्शन दिए माता पार्वती से बरदान पाकर दारुका अहंकार में चूर हो गयी थी उस समय पृथ्वी पर राक्षसों  का सम्राज था वह साधुओ का यजय को विव्द्हंस  कर देते थे राक्षसों ने अनेक संत को मार डाला था सभी राक्षस हिन्दू धरम को नस्त्र  करने में लगे हुआ थे दारुका राक्षसी समुन्द्र के किनारे एक वन में निवास  करती थी

राक्षस आम जनता पर काफी अत्याचार कर रहें थे ऋषि लोग राक्षसों के अत्याचार से तंग होकर महर्षि आर्व के पास गए उन्होंने  महर्षि से सारा हाल कहा महर्षि ओरव क्रोधित हो उठे उन्होंने  पुरे राक्षस जाती को श्राप दे दिया अब यदि राक्षस मनुष्य को सताएगा तो बो राक्षस अपने जान से हाथ धो बेठेगा राक्षसों में खल बलि मच गयी देवताओ को जब महर्षि के शाप की जानकारी मिली तो देवताओ ने राक्षसों पर आक्रमण कर दिया

सभी राक्षस दुबिधा में पर गए वह अगर युध्य में देवताओ को मारेंगे तो वो खुद मर जायेंगे अगर नहीं मारेंगे तो पराजित होकर देवताओ के अधीन हो जायेंगे इस विकट  समय में राक्षसों ने दारुका से मदद मांगी दारुका ने राक्षसों को सहारा दिया सभी राक्षस दारुका के साथ बन में रहने लगे वह वन हमेशा दारुका के पास रहता था माता पार्वती ने दारुका को इस वन की देखभाल की जिम्मेदारी सोपी थी दारुका ने माता पार्वती के बरदान का उपयोग करते हुइ वन को समुन्द्र में स्थापित कर दिया था राक्षसों ने पृथ्वी पर रहना छोर दिया था वह दारुका के साथ समुन्द्र में निर्भय होकर रहने लगे

सुप्रिय नाम का इक ब्राह्मण भगवान शिव का परम भक्त था वह अपने नाव से कही जा रहा था अचानक राक्षसों ने उसके  नाव पर हमला कर दिया सभी मुसाफिर यात्री राक्षसों का मुकाबला नहीं कर सके थे राक्षसों ने सभी को बंदी बना कर कारागार में  दाल दिया

सुप्रिय बड़ा ही सदाचारी भक्त था वह ललाट पर सदा भस्म लगाता था और गले में रुद्राक्ष की माला पहनता था सुप्रिय भगवान् शिव की पूजा करने के बाद ही भोजन ग्रहण करता था उनोने उन यात्रियों का भी ध्यान पूजा अर्चना की तरफ कर दिया था वे सभी यात्री भी शिव भक्त बन गए थे सुप्रिय हमेशा भगवान् शिव की ही आराधना में लीं रहता था कारागार में भी भगवान् शिव का भजन पूजन होने लगा था

राक्षसों को जब इसका पता चला तो तब वह आक्रोशित हो गए उनोने सुप्रिय को मार डालने का फैसला किया राक्षसों कारागार में पहुच गए सुप्रिय ध्यान लगाये बैठा था राक्षसों ने यात्रिओ को धमकाना सुरु कर दिया राक्षसों ने सुप्रिय से पूजा बंद करने को कहा सुप्रिय पर राक्षसों के बातो का कोई असर नहीं हुआ वाह मन्त्र जाप करता रहा राक्षसों ने सुप्रिय को मरने के लिए दोरे

सुप्रिय भय भीत नहीं हुआ वह भगवान् शंकर को अपनी रक्षा के लिए पुकारने लगा भगवान् शंकर प्रकट हुआ भगवान् शंकर ने सभी राक्षसों का संहार किया तभी से सुप्रिय के कहने पर भगवान् शिव वहा ज्योतिलिंग के रूप में स्थापित हो गए भगवान् शंकर के आज्ञा की अनुसार ही इस ज्योतिलिंग का नाम नागेश्वर ज्योतिलिंग पडा

द्वारिका से बस नागेश्वर ज्योतिलिंग तक जाती है द्वारका रेलवे स्टेशन से यह जाने के लिए छोटे छोटे बाहान भी मिलते है जिसका किराया ३० से ५० रूपये तक होता है यात्रा के दोरान रास्ते में काफी कुदरती नजरो का दर्शन होता है ज्योतिलिंग के दर्शन पूजन करके शिव भक्त कृताथ हो जाते है नागेश्वर मंदिर काफी पवित्र माना जाता है  यहाँ के वताबरण में सदा ही वेड मंत्रो और स्तुतिया गूंजती रहती है पुजारियों के दल सदा पूजा पाठ में लीं रहते है शिव भक्त स्नान करके ज्योतिलिंग पर जल अर्पण करते है मंदिर में पूजा पाठ करवाने की भी सुविधा है शिब भक्त पुजारियों को दक्षिणा देकर पूजा पाठ करवा सकते है नागेश्वर में कोई रहने की खास सुविधा नहीं है आप पुनः द्वारिका लोट कर यह रुक सकते है यह छोटे छोटे होटल है जिनका किराया  काफी रहता है आप अपनी सुविधा के अनुसार यहाँ भी रुक सकते है लेकिन बेहतर होगा की  आप द्वारिका लोट कर ही विश्राम करे यहा के होटलों में खाने पिने की सुविधा है जो आप आपको सस्ते दर पर भोजन करवा देंगे  आस पास कई धरम शालाये भी है जहा आप रुक सकते है श्री नागेश्वर ज्योतिलिंग का मंदिर काफी सुन्दर और आकर्षक है जो शिव भक्तो का मन मोह लेते है यहाँ शिव रात्रि के अबसर पर एक विशाल मेले का आयोजन किया जाता है कहा जाता है की कभी इस दारुका वन में नागो का निवास स्थान था जिसके कारन नागो से यह दारुका वन भरा परा था सभी नाग मनुष्यों से दुरी बना कर रहते थे लेकिन उन नागो के इस्वर भगवान शिव के होने के कारन इस ज्योतिलिंग का नाम नागेश्वर पडा था आप यहाँ आकर यहाँ के जंगली नजरो का लुफ्त जरुर लें क्योकि यह क्षेत्र अभी भी जंगलो से भरा पड़ा है ;जय नागेश्वर ज्योतिलिंग की ]

 

लेखक स्वामी निर्मल गिरी जी महाराज

 

रविवार, 29 दिसंबर 2024

श्री वैजनाथ ज्योतिलिंग एक अद्भुत ज्योतिलिंग


श्री वैजनाथ ज्योतिलिंग एक चिता भूमि


 अद्भुत ज्योतिलिंग  




 

 

श्री वैजनाथ ज्योतिलिंग झारखण्ड के देवघर जिले में है यहाँ जाने के लिए देश के सभी भागो से सीधी रेलसेवा उपलध है पास में ही दो रेलवे स्टेशन है पहला स्टेशन वैजनाथ धाम है जो मंदिर से दक्षिण की और 0.5 किलोमीटर की दुरी पर है जहा पर सीधी जसीडिह जंक्शन से मेमू ट्रेन आती है दूसरा रेलवे स्टेशन देवघर जंक्शन है जहा जसीडिह और बांका जंक्शन और दुमका से सीधी ट्रेन आती है आप देश के किसी भी कोने से जसीडिह जंक्शन पहुचे वहा से आपको  सीधे मेमू ट्रेन देवघर के लिए मिल जाएगी या आप सीधे  ऑटो या बस से मंदिर तक पहुच सकते है




श्री वैजनाथ ज्योतिलिंग भगवान शंकर या शिव का ग्यारहवा ज्योतिलिंग है यह झारखण्ड के देवघर जिले विश्व प्रसिद्ध ज्योतिलिंग मंदिर अबस्थित है श्री वेदनाथ मंदिर को किसने बनबाया ये बताना काफी कठिन है अनेको धरम ग्रंथो में इसका उल्लेख मिलता है शिव पुराण में इसका कई बार बरनन मिलता है





श्री वैजनाथ ज्योतिलिंग अत्यंत प्राचीन है इसकी काफी महिमा है सृस्ती के कण कण में भगवान शिव का निवास है वह अपने भक्तो पर अपनी कृपा दृष्टी बनाये रखते है भगवान् शिव की पूजा करने से मनुष्य की समस्त मनोकमने पूर्ण होती है श्री वैजनाथ ज्योतिलिंग का दर्शन करके शिव भक्त भाव भाव विभोर हो उठाते है





इसके बारे में किवदंती है की लंका का राजा रावण भगवान् शिव का परम भक्त था वह भगवान् शिव को प्रशन  करने के लिए कैलाश पर्वत पर जाकर तपश्या करने लगा वह भगवान शिव का परम भक्त था इसके कारन उसने तपस्या के दोरान अपने शिर को कट कर भगवान् शिव को समर्पित करने लगा इस प्रकार उसने अपने नो शिर को भगवान शिव के लिंग पर चदा डाले वह अपना दसमा शिर जैसे ही चदा ने के लिए शिर काटने जा रहा था तभी भगवान शिव प्रकट हो गए उन्होंने रावन के दसो शिरो को पहले जैसा कर दिया




भगवान शिव ने रावन को बरदान मांगने को कहा रावन ने भगवान् शिव से लंका चलने का बरदान माँगा भगवान् शिव ने रावन को अपना शिवलिंग लंका ले जाने का आदेश दिया रावन शिव लिंग को लेकर लंका की और चल दिया लेकिन देवगन नहीं चाहते थे की भगवान शिव लिंग के रूपमें लंका जाए उन्होंने देवी गंगा से  रावन को रोकने का अनुरोध किया





देवी गंगा रावन के पेट में जाकर समा गयी रावन को बरी जोर की लघु संका महसूस होने लगी वाह असमंजस में फंस गाया भगवान् विष्णु ग्वाले के रूप में वहा आये रावन अपने मूत्र के वेग को रोक नहीं पा रहा था उसने शिवलिंग को ग्वाले को पकरा दिया और लघु संका सी निवृत होने को चला गया

रावन काफी देर तक लधु संका करता रहां ग्वाले ने शिवलिंग को धरती पर रख कर गायव हो गया पृथ्वी पर रखते ही शिव लिंग अचल हो गया रावन ने शिव  लिंग को काफी उखारने का प्रयास किया लेकिन वह सफल नहीं हो सका वह निराश हो गया था उसने शिव लिंग को अगुंठे से दवा दिया रावन को खली हाथ लंका लोटना परा था

श्री वैजनाथ ज्योतिलिंग के दर्शन पूजन के लिए प्रति दिन लाखो शिव भक्त यहाँ मंदिर में आते है लेकिन सावन के महीने की छटा तो वहुत ही निराली होती है यहाँ शिव भक्तो की काफी भीर जुटती है यहाँ ज्योतिलिंग पर जल चढ़ने के लिए सावन के हर सोमबार को काफी भीर होती है यहां करीब २से ३ लाख शिव भक्त गंगा जल अर्पित करते है यह क्रम पुरे सावन महीने चलता रहता है याह मेला भादो महीने में लगा रहता है यह मेला किसी भी मायने में कुभ से कम नहीं है मेले में प्रतिदिन करीब 1 से २ लाख शिव भक्त गंगा जल अर्पित करते है यह मेला भारतीय सनातन संस्कृति का जीता जागत्ता नमूना है





श्री वैजनाथ ज्योतिलिंग पर जल अर्पण करने के लिए शिव भक्त केसरिया रंग के कपरे पहनते है विश्व का कोई ऐसा मेला नहीं है जहा एक ही रंग के कपरे पहन कर भक्त मंदिर जाते है केसरिया रंग सोभाग्य एकता और प्रेम का प्रतीक है शिव भक्त अपने काँधे पर कावर लेकर चलते है कावरियो में जादातर शिव भक्त बिहार उतर प्रदेश झारखण्ड मध्य प्रदेश और बंगाल के कवारिये रहते है सभी राज्यों के भी और पुरे देश ही नहीं पुरे विश्व से  शिव भक्त सावन के महीने में यहाँ पहुचते है इन कावरियो को बम बम कह कर संबोधित किया जाता है




श्री वैजनाथ ज्योतिलिंग के सावान के महीने के मेले में चार प्रकार के कावारिया होते है साधारण बम कावारिया सुल्तान गंज से जल भर कर कावर में लेकर रास्ते में रुकते खाते पिटे सोते बैठते तिन से चार दिन में बाबा वैजनाथ के दरवार में पहुचते है और श्री वैजनाथ ज्योतिलिंग के शिव लिंग पर जल अर्पित करते है इस मेले में साधारण कावरियो का संख्या ज्यादा होती है डाक कावारिये सुल्तान गंज से गंगा जल उठाने के बाद कही भी नहीं रुकते है वे लगातार चलते चलते करीब १४ स्व १८ या २४ घंटे में बाबा वैजनाथ के दरवार पहुच कर  शिव लिंग पर गंगाजल अर्पित करते है  तीसरा बम जिसे खरा बम कहा जाता है ये कावर में जल भर कर श्री वैजनाथ ज्योतिलिंग पर जल अर्पित करने जाते है इसमें शिव भक्त आराम तो कर सकता है लेकिन कांवर को आराम नहीं कराया जाता है इसके लिए कोई आदमी इसे अपने कंधे पर लेकर रात नहर हिलाते डुलते रहते खरा बम कांवर को लेकर २४ से ३६ घंटे में बाबा धाम पहुचते है और श्री वैजनाथ ज्योतिलिंग पर गंगा जल अर्पित करते है





डंडी कावारिया की यात्रा सबसे अधिक और कठिन और मुस्किल  होती है यह सुल्तान गंज से १०५ किलो मीटर की यात्रा दंड वट होकर लेट कर करते है जिसमे करीब 1 महीने का समय लगता है और ये बम श्री वैजनाथ ज्योतिलिंग के शिव लिंग पर गंगा जल अर्पित करते है कावरियो को काफी नियम का पालन करना होता है बम सुबह स्नान के बाद ही कांवर लेकर चल सकते है किसी भी शिव भक्त कवारिये को वो बाये छोर कर आगे नहीं निकल सकते है कंवर से कांवर न टकराए इसका भी ख्याल रखना परता है इन नियमो का सख्ती से पालन करना होता है तभी ज्योतिलिंग पर जल अर्पण करने का पुन्य मिलता है

सुल्तान गंज से कवारिये गंगा नदी से जल भर कर कांवर की पूजा अर्चना करके बम अपनी यात्रा शुरू करते है यात्रा के १०५ किलोमीटर की दुरी में विभिन धर्म शालाओ में बिसराम करते हुइ ये यात्रा पूरी करते है रस्ते का दृश्य काफी सुन्दर होता है यह यात्रा मुख्य रूप से मुंगेर जिले से शुरू होकर बांका जिले में होती है इसमें काफी सुन्दर नज़ारे है भागलपुर जिले के सुल्तान गंज से ये यात्रा सुरु होती है इसके बाद मुंगेर जिले में प्रवेश करके बम काफी सकूँ महसूस करते है ज्यो ही बांका जिले की सीमा आती है पहारी इलाका सुरु हो जाता है जिसमे जलेबिया मोर अबरखा दर्शनीया प्रमुख्य है बम करीब ९० किलोमीटर की यात्रा बिहार में पूरी करते है ज्यो ही झारखंड की सीमा दुम्मा से सुरु हो जाती है वहा से काफी भीर भर बाले इलाके आ जाते है अब्रखिया के क्षेत्र में से गुजरते हुई शिव भक्तो को काफी अछे दृश के अबलोकन होते हाई कठिन रास्तो में अब्रखिया जबेलिया मोर प्रमुख्य है

दर्शनीया तक पहुचते समय शिव भक्त काफी थक जाते है परन्तु वहा से बाबा वैजनाथ के मंदिर का शिखर का दर्शन करके शिव भक्तो में नए उत्साह का संचार हो जाता है बम बोल बम के नारे के जयघोष से अपनी यात्रा पूरी करके श्री वैजनाथ ज्योतिलिंग पर गंगा जल अर्पित करते है

श्री वैजनाथ धाम जसीडिह जंक्शन से 6 किलोमीटर की दुरी पर है नजदीकी हवाई अड्डा पटना और रांची है बैजनाथ धाम देश के सभी प्रमुख्य शहरों से ज़ुरा हुआ है वैजनाथ ज्योतिलिंग धाम में पर्याप्त संख्या में धरम शालाये उपलध है जहा भोजन उचित दर पर मिल जाता है वैजनाथ ज्योतिलिंग धाम में जाती बंधन नहीं है यहाँ किसी तरह का भेद भाव नहीं किया जाता है शिव भक्तो के सुख सुभिधाओ का पूरा ख्याल रखा जाता है श्री वैजनाथ ज्योतिलिंग एक पत्थर के दिवार से घिरा हुआ है गर्व गृह में ज्योतिलिंग स्थापित है ज्योतिलिंग की उचाई लगभग 11 अंगुल है रावन के द्वरा दवाए जाने के कारन शिव लिंग के उपरी हिस्से में एक गद्दा बन गया है मंदिर परिसर में एक मंडप है जो चार खंभों पर खरा है

मंदिर के मुख्य द्वार पर भगवान शिव के वहां नंदी की मूर्ति बिराजवान है मंदिर की दीवारों पर काफी उम्दा नाकाशी की गयी है वैजनाथ धाम ज्योतिलिंग में रहने की समुचित सुबिधा है विभिन संस्थाओ के द्वारा संचालित धरम शालयो के अतिरिकित पर्यटन विभाग के भी यहाँ गेस्ट हाउस है जहा आप को समुचित किराये पर रूम मिल जायेंगे इसके अतिरिकित यहां निजी होटल भी है जहा आपको रूम आशानी से मिल जायेंगे

श्री वैजनाथ मंदिर के पण्डे अपने यहाँ अपने यजमानो के भी रहने की बय्बस्था करते है रहने के बदले में कुछ किराया देना परता है या आप जो पूजा करवाएंगे उशी से ये अपना किराया बसूल लेंगे

श्री वैजनाथ धाम के आस पास अनेको दर्शनीय स्थान है जिसमे से प्रमुख्य दर्शनीय स्थान नो लकखा मंदिर तपोवन ठाकुर अनुकालानंद मंदिर नंदन पहार प्रमुख्य है यहाँ प्रकृति की अनुपम छठा है पगला बाबा मंदिर वेजू मंदिर हाथी पहार कुंदेस्वारी मंदिर माँ शीतला मंदिर रामकृष्ण मिशन त्रिकुटा पहार माँ तारा पिट  अज्गेवी नाथ मंदिर सत्संग मंदिर आदि प्रमुख्य दर्शनीय स्थल है

माँ तारा पीठ शक्तिपिठो में प्रमुख्य है है ऐसी मानता है की माँ तारा के दर्शन मात्र से ही भक्तो का कल्याण होता है यहा तांत्रिक साधने भी की जाती है बेजू मंदिर यहाँ का प्रमुख्य मंदिर है ऐसी मानताए है की जव रावण को लघु शंका लगी थी तब उसने  वेजू को ही भगवान् शिव के ज्योतिलिंग को शिर पर रखने के लिए दिया था ऐसी मानताए है कि वेजू ही भगवान् विष्णु के रूप थे या के रूप में आये थे इसी कारान से बाबा धाम आये हर शिव भक्त इसके दर्शन करते है

श्री वैजनाथ धाम ज्योतिलिंग मंदिर से ४२ किलोमीटर की दुरी पर दुमका जिले में बाबा बासुकी नाथ मंदिर है जिस मंदिर में आप जाकर मंदिर में दर्शंपुजन और जलाशिवेक कर सकते है बाबा बासुकीनाथ के बिना बाबा वैजनाथ की पूजा अधूरी मानी जाती है बाबा वैजनाथ में जो कवारिये आते है वे बाबा बासुकी नाथ के लिए गंगा जल अबश्य लेकर आते है स्थानीय logo की मानती है की बाबा बासुकीनाथ  भी एक ज्योतिलिंग है शिव भक्तो का मानना है की बाबा बासुकीनाथ ही नागेश्वर ज्योतिलिंग है जो झारखण्ड के दुमका जिले में है जो बाबा बासुकीनाथ के रूप में यहाँ बिराजमान है जिसकी पूजा साडी जनता शिव भक्त करते है आप अपने जीवन में समय निकल कर यह आब्शय आये ताभी आपका जीवन सफल होगा

  writened by स्वामी निर्मल गिरी जी महाराज  

 

 

 

 

 

 

 

 

 

श्री रामेश्वरम ज्योतिलिंग एक अनोखा ज्योतिलिंग

 

श्री रामेश्वरम ज्योतिलिंग एक अनोखा ज्योतिलिंग

श्री रामेश्वरम ज्योतिलिंग तमिलनाडु राज्य में है यहाँ जाने के लिए देश के सभी भागो से सरक रेल हवाई यात्रा की सुबिधा उपलध है यह तमिलनाडु के   जिले में है यह टापू देश के दक्षिणी सिरे पर है यहाँ रेल और सरक मार्ग से आप जा सकते है नजदीकी रेलवे स्टेशन रामेश्वरम ही है समुन्द्र के उस पार पामबन ब्रिज है जिसे पार कर हम रामेश्वरम पहुच सकते है पुल काफी पुराना है इसे अंग्रेजो ने १९१४ में बनबाया था अब नए ब्रिज पुल का भी निर्माण हो गया है जिसका उद्घाटन कुछ ही दिनों में देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी करने बाले है फ़िलहाल यहाँ जाने के लिए आपको पंबम ब्रिज रेलवे स्टेशन पहुचना होगा जहा से मेमू ट्रेन आपको मिल जायेगी जो आप को रामेश्वरम पंहुचा देगी आप सारक मार्ग से भी जा सकते है देश के हर कोने से मद्रास या मनामदुरै जंक्शन पहुचकर भी आप- आगे ट्रेन से रामेश्वरम की यात्रा कर सकते है

यह भगवान शिव का सातवा ज्योतिलिंग है दक्षिण भारत में इसकी काफी महत्व है श्री रामेश्वरम हिन्दुओ के चार धाम में से एक है रामेश्वरम शंख के आकार का एक सुन्दर टापू है यह हिन्द महासागर और बंगालध की खारी से घिरा हुआ है भगवान् राम ने लंका पर विजय प्राप्त करने के लिए यहाँ एक पथ्थरो से सेतु का निर्माण करवाया था श्री राम ने बाद में विभीषण के कहने पर इस सेतु को तोर दिया था इस सेतु के अवसेश आज भी समुद्र में दिखाई देते है

पहले रामेश्वरम जाने के लिए नाव का इस्तेमाल होता था बाद में एक राजा ने यहाँ पाथ्थारो का एक पुल का निर्माण करवाया था बाद में अग्रेजो के आने तक यह पुल टूट चूका था अग्रजो ने बाद में इसके जगह पर एक खुबसूरत रेलवे पुल का निर्माण करवाया यह पुल रामेश्वरम को भारत से रेल सेवा से जोरता है सागर के उठला होने के कारन यहाँ बहुत कम लहरे उठती है इस पुल को पार करते समय ऐसा लगता है की जैसे बह वह किसी नदी को पर कर रहे है

श्री रामेश्वरम ज्योतिलिंग की स्थापना की कथा बहुत हि रोचक है श्री राम ने सीता को छुराने के लिए लंका पर चढाई की थी श्री राम युद्य नहीं चाहते थे लेकिन रावन सीता को बापस करने को तेयार नहीं था श्री राम को मजबूर होकर युध्य करना परा था अंत में श्री राम की जित हुई थी रावन युध्य में मारा गया था


रावन महार्रिशी पुलस्त्य का पोता था उसे चारो वेदों का पूर्ण ज्ञान था रावन भगवान् शिव का परम भक्त था रावन को मरने से श्री राम को काफी दुखी हुआ था वह ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्त होना चाहते थे उनोने श्री रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना करने का निर्णय लिया श्री राम ने हनुमान जी को काशी से एक शिवलिंग लाने का आदेश दिया था हनुमान जी हवाई मार्ग से काशी शिवलिंग को लेंने चले गए

शिवलिंग के स्थापना का समय निकला जा रहा 

था हनुमान जी को आने में देर हो गयी थी सीता जी ने बालू से एक शिवलिंग बना दिया श्री राम जी ने शुभ मुहूर्त में शिव लिंग को स्तापित कर दिया यही शिवलिंग रामनाथ या रामेश्वर कहलाता है श्री राम जी ने हनुमान जी के द्वारा लाये गए शिवलिंग को भी बगल में छोटे शिव लिंग के पास स्थापित कार दिया श्री रामेश्वरम मंदिर में दोनों शिव लिंग की पूजा होती ह

रामेश्वरम मंदिर का निर्माण श्री लंका के राजा पराक्रम बहु ने करवाया था गर्व गृह में सिर्फ शिवलिंग की ही स्थापना की गयी थी और किसी भी देवी देवता की मूर्ति नहीं राखी गयी थी बाद में रामनाथपुरम के राजा उद्दैन्यर ने इसका पुनः निर्माण  करवाया था रामेश्वराम मंदिर विश्व में अपनी अलग छवि रखता है इस मंदिर में विश्व का सबसे लम्बा गलियारा है मंदिर का मुख्य पुजारी नेपाल देश का ही होता है रामेश्वरम का विशाल मंदिर पथ्थरो का निर्मित है मंदिर के समीप कोई पहर नहीं है गंध मादन पर्वत असल में एक तिला है इसमें से पर्थर निकलना आसान नहीं है है मंदिर बनाने के लिए पत्थर लंका से नवो मेंलाद कर लाये गए थे इस मंदिर का प्रवेश द्वार 40 फीट उचा हाई मंदिर के खंभों पर काफी सुन्दर नकाशी की गयी है यह मंदिर भारतीय शिल्प कला का अद्भुत नमूना है

पहले रामेस्वरम मंदिर में २४ कुंद थे लेकिन उन में से २ कुंद सुख गए अब सिर्फ  २२ कुंद ही बचे है २१ कुंदो का मिला जुला पानी २२वे कुंद में आता है इन जल कुंदो में नहाने से मनुष्य के कई जन्मो के पाप मिट जाते है

मंदिर के टिक सामने पूर्वी दरवाजे के पास सीता कुंद बना हुआ है कहा जाता है की यही वो जगह है जहा सीता जी ने अग्नि परीक्षा दी थी यहाँ समुन्द्र का किरण अर्ध गोलाकार है

यहाँ सागर बिलकुल शांत रहता है वह एक तालाव सा लगता है हनुमान कुंद में पत्थर तैरते हुआ नजर आते है श्री रामेश्वरम मंदिर की हिफजत रामनाथपुरम के राजा करते है रामनाथपुरम रामेश्वरम से ३४ मिल दूर है यह रियासत अब तमिलनाडु राज्य में मिल गयी है

रामनाथपुरम के महल में एक काला पत्थर रखा हुआ है जिसके बारे में कहा जाता है की यह पत्थर राम जी ने केवट को दिया था शिव भक्त इस पत्थर को देखने के लिए रामनाथपुरम जाते है

धनुष्कोती तीर्थ टापू के दक्षिण सिरे पर है यहाँ बंगाल की खरी हिन्द महासागर से मिलती है इस जगह को सेतु बांध कहा जाता है धनुष्कोती तीर्थ का धार्मिक काफी महत्व है पहले के समय में यही से श्री लंका के कोलम्बो जहाज से जाया करते थे  अब यह जगह समुन्द्र में तूफान आने से नस्त हो गया है

रामेश्वरम मद्रास से करीब ४५० किलोमीटर की दुरी पर है मद्रास से रामेश्वरम पहुचने में करीब २४ घंटे का समय लगता है अब सीधे रामेश्वरम तक ट्रेन जाती है जहा का नजदीकी स्टेशन पामबन ब्रिज है यह से भी ट्रेन रामेश्वरम के लिए चलती है समुद्र में काफी कोरिया  शंख शिपे मिलती है कही कही सफ़ेद शंख भी मिल जाते है सफ़ेद रंग के मूंगा भी मिल जाते है जिसकी काफी डिमांड है यह का प्राकृतिक सोंदर्ज  काफी सुन्दर और सुहावना  है

 लेखक स्वामी निर्मल गिरी जी महाराज 

शनिवार, 28 दिसंबर 2024

ओम्करेस्वर ज्योतिलिंग एक अद्भुत ज्योतिलिंग

 

श्री ओम्कारेश्वर ज्योतिलिंग एक अद्भुत ज्योतिलिंग 

 

 




श्री ओम्कारेश्वर ज्योतिलिंग भगवान शिव का चतुर्थ ज्योतिलिंग है यह ज्योतिलिंग मध्यप्रदेश के इंदौर जिले में है यहा पहुचने के लिए देश के सभी जगहों से रेल और सरक तथा हवाई यात्रा की सुविधा उपलध है यह श्री ओम्कारेश्वर ज्योतिलिंग इंदौर शहर से करीब ८० किलोमीटर की दुरी पर है यह खंडवा जिले में परता है यहाँ जाने के लिए आप को इंदौर आना होगा जहा से बस या रेल से आप ओम्कारेश्वर ज्योतिलिंग पहुच सकते है रेल यात्रा के लिए आप को इंदौर से ओम्कारेश्वर रेलवे स्टेशन पहुचना  होगा जहा से आप को ऑटो या सीधी बस भी मिल जाएगी आप अपनी सुबिधा के अनुसार इंदौर से बस से भी यहाँ जा सकते है बस का किराया लगभग 100 से १२० रूपया रहता है आप दक्षिण से खंडवा जंक्शन से   बस से भी  यहाँ आ सकते है मंदिर से ही कुछ दुरी पर बस स्टैंड है




श्री ओम्कारेश्वर ज्योतिलिंग मध्यप्रदेश में नर्मदा नदी के किनारे अबस्तिथ है यह श्री ओम्कारेश्वर ज्योतिलिंग मंदिर काफी भव्य और सुन्दर है मंदिर प्रागनं स्थल ॐ के आकर जैसा दीखता है शिव भक्त इसकी श्रधा से परिक्रमा करते है मंदिर इक पुल से ज़ुरा हुआ है पुल पर वाहनों का प्रवेश बरजित है आप मंदिर तक इस पुल को पार कर के जा सकते है मंदिर के दोनों और पर्वत ही है ये चारो और से पहांरों से घिरा है मंदिर के आस पास काफी पैर पोधे है जो इसके सुन्दरता में चार चाँद लगा ते है




श्री ओम्कारेश्वर ज्योतिलिंग की सुन्दरता पूरी तरह से मन मोहक है मंदिर के आस पास काफी सुन्दर दृश्य  है मंदिर के टिक में नर्मदा नदी पर डेम है जिसकी सुन्दरता अनोखी है समय समय पर डेम से पानी भी छोरा जाता है उस समय नर्मदा नदी में बाद आ जाती है

 यहाँ पहुच कर आप नर्मदा नदी में स्नान कर मंदिर में जाकर पूजा कर सकते है पास ही ममलेश्वर ज्योतिलिंग भी है जहा आप पहले जाकर दर्शन पूजन करे फिर आप पुल पारकर श्री ओम्कारेश्वर ज्योतिलिंग मंदिर में जाकर पूजन अर्चन करे




हिन्दू धरम ग्रंथो के अनुसार एक बार देव और दानवो में घोर युध्य हुआ युध्य में दानव विजयी हुआ देवता हार से निरास होकर भगवान शिव की सरन में चले गए देवता भगवान् शिव की स्तुति करते हुए विनती की वह दानवो से उसकी रक्षा करे भगवान शिव ने देवताओ को अभय का बरदान दिया देवता गन भगवान शिव के आशीर्वाद के कारन भय मुक्त हो गए तभी से वहा भगवान् शिव ओम्कारेश्वर ज्योतिलिंग के रूप में प्रकट हो कर दानवो का नाश किया देवताओ की मनोकामने पूर्ण हुए तभी से यह ज्योतिलिंग ओम्कारेश्वर के रूप में प्रसिद्ध हो गया




ओम्कारेश्वर ज्योतिलिंग इंदौर से ८० किलोमीटर की दुरी पर है यहाँ तक आप सीधे बस से आ सकते है ओम्कारेश्वर मंदिर तक पहुचने में लगभग ३ घंटे का समय लगता है यात्रा के दोरान आप को बार ही सुन्दर कुदरती नजरो का दर्शन होता है

श्री ओम्कारेश्वर ज्योतिलिंग का दर्शन पूजन करके शिव भक्त भाव बिभोर हो जाती है राजा होलकर ने श्री ओम्कारेश्वर ज्योतिलिंग का निर्माण करवाया था मदिर पांच मजिला है श्री ओम्कारेश्वर ज्योतिलिंग का ज्योतिलिंग एक गुम्वाद के निचे है भगवान शिव की मूर्ति मंदिर के शिखर पर है श्री ओम्कारेश्वर ज्योतिलिंग के पीछे माता पार्वती देवी की मूर्ति है इस मूर्ति के सजावट में चादी का उपयोग किया गया है मंदिर का गर्व गृह काफी छोटा है इसमें एक साथ करीब १५ लोग ही खरे हो सकते है मुख्य दवार पर सुखदेव मुनि की मूर्ति है सुखदेव मुनि भगवान शिव के परम भक्त थे भक्तगण भगवान शिव के साथ सुख् देव मुनि की भी पूजा करते है




श्री ओम्कारेश्वर ज्योतिलिंग का मंदिर रोज सुवह  के 5 बजे खुलता है  भगवान् शिव के ज्योतिलिंग कि आरती दिन में तिन बार की जाती है श्री ओम्कारेश्वर ज्योतिलिंग को दुघ पानी दही शहद और धी सी स्नान कराया जाता है शिवभक्त गन ज्योतिलिंग पर चावल हल्दी और सिंदूर भी चढाते है श्री ओम्कारेश्वर ज्योतिलिंग के पूजा करवाने के लिए पुरोहित भी उपलध है पूजा का कोई निर्धारित रेट नहीं है आप अपने अनुसार पुरोहित को दक्षीना भी दे सकते है मंदिर का गर्व गृह छोटा होने  के कारन पुरोहित जल्दी पूजा संपन करवाते है अनुष्ठान के अबसर पर वाहर ही पूजा होते है पुरोहित भक्तोको पूर्ण सहयोग करते है श्री ओम्कारेश्वर ज्योतिलिंग का मंदिर रात्रि के दस बजे बंद हो जाता है

श्री ओम्कारेश्वर ज्योतिलिंग में यात्रियों के ठहरने की उत्तम सुबिधा है यहाँ पर्याप्त धरम शालाये है श्री ओम्कारेश्वर ज्योतिलिंग

मंदिर ट्रस्ट के द्वारा आश्रम का  भी निर्माण कराया गया है यात्री निवास में यात्रियों को वेहतरीन सुविधा प्रदान की जाती है श्री ओम्कारेश्वर ज्योतिलिंग के केंटिन में उचित दर पर भोजन की सुविधा उपलध है मंदिर से ही थोरी दूर पर पयर्टन भवन भी है जहा आप रुक सक्रते है



श्री ओम्कारेश्वर ज्योतिलिंग मंदिर से कुछ दुरी पर नर्मदा और कावेरी नदी का संगम है जो की काफी दर्शनीय स्थल है यहाँ भक्त गन अपने पूर्वजो का तर्पण करते है मंदिर के टिक पीछे इक गुफा है जिसमे आदि गुरु शंकराचार्ज की प्रतिमा है नर्मदा पण बिजली योजना के द्वारा एक बांध का भी निर्माण करवाया गया है जो काफी दर्शनीय है यहाँ नाव के द्वारा पुरे नदी के बांध का भ्रमण किय जा सकता है श्री ओम्कारेश्वर ज्योतिलिंग एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है यहाँ आकर सिव भक्त धन्य हो जाते है अपने जीबन को धन्य कर लेते है जय बोलो ओम्कारेस्वर की जय




स्वामी निर्मल गिरी जी  महाराज

 

 

श्री काशी विश्वनाथ ज्योतिलिग दिव्य और अलोकिक ज्योतिलिंग

श्री काशी विश्वनाथ ज्योतिलिग दिव्य और अलोकिक ज्योतिलिंग निर्मल सेवा संस्थान सहरसा बिहार की और से श्री काशी विश्वनाथ ज्योतिलिंग के चरणो...